Wednesday, June 16, 2010
बहुत हो चुकी गीत ग़ज़ल छंदों की हार इन मंचों पर
गत दिनों मंचीय कवि और कविता पर
चिन्तन कर रहा था
तो ये पंक्तियाँ स्वतः और बरबस ही बन गईं
बहुत हो चुकी नारी की छीछालेदार इन मंचों पर
बहुत हो चुका घरवाली का कारोबार इन मंचों पर
बहुत हो चुके सड़े चुटकुले बार-बार इन मंचों पर
बहुत हो चुके टुच्चे टोटके लगातार इन मंचों पर
बहुत हो चुकी गीत ग़ज़ल छंदों की हार इन मंचों पर
बहुत हो चुका चीर काव्य का तार तार इन मंचों पर
बहुत हो चुका कविताई से व्यभिचार इन मंचों पर
बहुत हो चुकी सरस्वती माँ शर्मसार इन मंचों पर
अब मंचों पर
राम के मर्यादित परिवेश की बात करो
महावीर की
अहिंसा के शीतल सन्देश की बात करो
जन जन में
जो उबल रहा है उस आवेश की बात करो
कवियों ! अब
तुम कविताओं में सिर्फ़ देश की बात करो
www.albelakhatri.com
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जिन्दा लोगों की तलाश!
ReplyDeleteआपको उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की इस तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को हो सकता है कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।
आपको उक्त टिप्पणी प्रासंगिक लगे या न लगे, लेकिन हमारा आग्रह है कि बूंद से सागर की राह में आपको सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी आपके अनुमोदन के बाद प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप को सारथी बनना होगा। इच्छा आपकी, आग्रह हमारा है। हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी जिनमें हो, क्योंकि भगत ने यही नासमझी की थी, जिसका दुःख आने वाली पढियों को सदैव सताता रहेगा। हमें सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह और चन्द्र शेखर आजाद जैसे आजादी के दीवानों की भांति आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने वाले जिन्दादिल लोगों की तलाश है। आपको सहयोग केवल इतना भी मिल सके कि यह टिप्पणी आपके ब्लॉग पर प्रदर्शित होती रहे तो कम नहीं होगा। आशा है कि आप उचित निर्णय लेंगे।
समाज सेवा या जागरूकता या किसी भी क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों को जानना बेहद जरूरी है कि इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम होता जा है, बल्कि हो ही चुका है। सरकार द्वारा जनता से हजारों तरीकों से टेक्स (कर) वूसला जाता है, देश का विकास एवं समाज का उत्थान करने के साथ-साथ जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों द्वारा इस देश को और देश के लोकतन्त्र को हर तरह से पंगु बना दिया गया है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, व्यवहार में लोक स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को भ्रष्टाचार के जरिये डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने अपना कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं। ऐसे में, मैं प्रत्येक बुद्धिजीवी, संवेदनशील, सृजनशील, खुद्दार, देशभक्त और देश तथा अपने एवं भावी पीढियों के वर्तमान व भविष्य के प्रति संजीदा लोगों से पूछना चाहता हँू कि केवल दिखावटी बातें करके और अच्छी-अच्छी बातें लिखकर क्या हम हमारे मकसद में कामयाब हो सकते हैं? हमें समझना होगा कि आज देश में तानाशाही, जासूसी, नक्सलवाद, लूट, आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका एक बडा कारण है, भारतीय प्रशासनिक सेवा के भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरों द्वारा सत्ता मनमाना दुरुपयोग करना और कानून के शिकंजे बच निकलना।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)- के सत्रह राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से मैं दूसरा सवाल आपके समक्ष यह भी प्रस्तुत कर रहा हूँ कि-सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! क्या हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवक से लोक स्वामी बन बैठे अफसरों) को यों हीं सहते रहेंगे?
जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहे उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्त करने के लिये निम्न पते पर लिखें या फोन पर बात करें :-
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666, E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
आदरणीय अलबेलाजी
ReplyDeleteआपका तो वैसे भी चारों ओर साम्राज्य स्थापित है । नेट पर भी पहले से ही छाए हुए हैं । अब इस ब्लॉग के माध्यम से आपसे मिलने की संभावनाएं और भी बढ़ी हैं , यह अच्छी बात है ।
और आपने मंचों पर कविता की हो रही दुर्गत को नज़दीक से भी देखा है ।
आपको बधाई है कि आपने अपनी रचना द्वारा यहां भी ढंग के रचनाकारों की पीड़ा को अभिव्यक्ति दी है …
बहुत हो चुकी सरस्वती माँ शर्मसार इन मंचों पर
साधुवाद के पात्र हैं आप ।
आशा है , आम जन को जिस कुटिलता से अच्छी कविता से दूर किए जाने के षड़यंत्र रचने वाले सक्रिय हैं , उनके इरादों को नाकाम करने की दिशा में भी आप अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे ।
मैं देख रहा हूं ऐसे लोग अब नेट पर भी पांव पसारने की कोशिशों में हैं ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
वाह बेहतरीन
ReplyDeleteअलबेला जी चंद लाइन में ही मंचीय कविता की सारी कहानी कह दी है आपने। बदलने का समय तो है। बदलाव की जुस्तुजु लोगो में दिख रही है। पर एक मंच नहीं मिल पा रहा। अलग अलग स्तर पर अलग अलग हो रहा संघर्ष एक मंच पर आ जाए तो काया पलट होते देर लगेगी क्या।
ReplyDeleteअलबेला जी, सचमुच छा गये आप।
ReplyDelete--------
ये साहस के पुतले ब्लॉगर।
व्यायाम द्वारा बढ़ाएँ शारीरिक क्षमता।
अलबेला जी!...सब कुछ छटाकेदार, चटाकेदार, फटाकेदार और धमाकेदार है.....मजा आ गया!
ReplyDelete....जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई!.... सब मंगलमय हो!
ReplyDelete...गणेश चतुर्थी और ईद की बधाइयां !
ReplyDeletealbela ji !! aapne mudaa bahut hee sahi uthaya hai..aaj kal hasy vyang ke naam par TV channels mei aise baatey hasi hasi me dikhayi jaati hai jo bhaddi hoti hai .. parivar ke saath baith kar kaise dekhe TV... aapki rachnaa bahut khoob hai...
ReplyDeleteकवियों ! अब
ReplyDeleteतुम कविताओं में सिर्फ़ देश की बात करो
सात्विक आह्वान!!
अभिनंदन!
very good idea.
ReplyDeleteसुंदर और सटीक..!!
ReplyDeleteएक सुन्दर कविता ही नही व्यंग्य की पैनी धार भी है। लेकिन कब बदलेगा कविता का यह स्वरूप।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है.........आशा है सब कवि इस और ध्यान देंगे
ReplyDeleteआपको बधाई!
rachana rachanakar ka parechayak hoti hai.
ReplyDeleteEsileye Es manhari rachana ko padhkar aap ki rachanashilata & gayan ka bakhoobi pata lagta hai..
man ki baat kahi aapne Albele ji. Ekdum seedhe jaa ke lagti hai sahi jagah.... abhivaadan.
ReplyDeletebahut sateek baat kahi sadhe sandhaano se....ek dum man ki baat. Abhivaadan aapko Albela Ji!!
ReplyDeleteटुच्चे टोटके .........
ReplyDelete'''''''''''''''''''''''''''''''''''
बहुत ही अच्छी रचना है |
धन्यवाद |
ek umda lekh...
ReplyDeletemere blog par bhi sawagat hai..
Lyrics Mantra
thankyou
sahi kaha lekin, sabhi tarah ki rachnao ka mahatwa hai.....
ReplyDeleteagar ek hi ras par likhna prarambh ho jayega to sahitya ke baaki rason ka kya hoga????
ReplyDeleteगज्जु दादा वाह वाह अब कविता में देश की बात करो. बधाई.
ReplyDeleteकविता की कटिया से मछली कैसे फँसाई जाती है ये ब्लाग की दुनियाँ ही नहीं मंच की दुनियां में आप ने वर्षों से देखा है तब ही इतनी तल्खियां आ रही हैं बयान में.
આપ ગુજરાતના છો અને રાષ્ટ્રભાષા હિન્દીની સેવા આપની કલમ અને જબાન થી કરી રહ્યા છો તેની પણ અત્રે નોધ લેવી પડે. ખાસ કરી ને આપ સૂરતના છો તે બાત જ ગઝબની કહેવાય. મેં બારડોલી પાસે કરચલિયા સરકારી કોલેજમાં પણ નૌકરી કરેલ છે. આપને કાશ ક્યારે રૂબરૂ મળી શકાય મનોજ ખંડેરિયાના શબ્દોમાં કહુઁ તો-
મને સદભાગ્ય કે શબ્દો મળ્યા તારા નગર જાવા,
ચરણ લઈ દોડવા બેસું તો વરસો ના વરસ લાગે.
अब तो जाते हैं मयकदे से मीर,
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया.
बेहतरीन sir
ReplyDelete